कलयुग में झूठा सच लगे और सच लगे है झूठ,
ऐसा समय है आ गया बेटा रहा माँ-बाप से रूठ।
जीना हो रहा दूभर सब पकड़े झूठ डगोरी,
घर से लुक्का चुप्पी करते आजकल के छोरा छोरी।
भाइयों सच की रस्सी पकड़ो, झूठा ज्यादा देर न छाये,
सच्चा चाहे सीधा साधा, सबके मन को भाये।
गर लेना चाहो तरक्की लो बात मेरी भी मान,
झूठ न दिल में रखना कभी, सच्चे की होती ऊँची शान।
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धन्यवाद @harry4u इतनी सुंदर कविता के लिए.