You are viewing a single comment's thread from:

RE: धर्म का प्राणतत्व : विनय (भाग # २) | The Life of Religion : Modesty (Part # 2)

in #life6 years ago

पहले के जमाने में गुरु और शिष्य की बातें बिल्कुल अलग थी आज के युग में कोई अगर किसी सन्त या ऋषि को देखते हे तो सिर्फ यही सोचते ये की ये कुछ मानंगे आ गए