एक गांव में चम्पू पहलवान की दूध की एक बड़ी दुकान थी। वे सुबह जी भर के दूध बेचते। फिर दोपहर में खाट डालकर वहीं देर तक सोते। शाम को दंड लगाते और कुश्ती करते। इस पहलवान के मजबूत शरीर में देश के लिए बहुत प्रेम था। वह मन का कोमल था। उसे अपने देश से खूब प्यार था। देश की बात आने पर वे भावुक हो उठते थे, कहें तो पक्के देशप्रेमी थे। कोई किसी और देश की बात करता तो पहलवान के पास अपने देश के बारे में कहने को खूब था। बिल क्लिंटन की कोई तारीफ करें तो पहलवान को कोई मतलब नहीं था, पर अगर अपने देश को किसी ने भला-बुरा कहा तो बस फिर पहलवान से बुरा कोई नहीं। काफी लोगों को ताज्जुब भी होता था कि प्यारे पहलवान कभी स्कूल तो गए नहीं फिर उन्हें आजादी की लड़ाई में और उसके बाद क्या-क्या हुआ सबकुछ रटा हुआ है। इस मामले में पहलवान के सामने अच्छे-अच्छों की बोलती बंद हो जाती थी। यहां तक गांव के स्कूल में इतिहास पढ़ाने वाले सर की भी। प्यारे पहलवान हष्ट-पुष्ट थे, पर बिना बात कभी किसी से उलझते नहीं थे। उन्होंने अपनी दुकान में गांधीजी की बड़ी-सी तस्वीर लगा रखी थी। भगवान की जगह वे गांधीजी के सामने माथा झुकाते थे। स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर पहलवान अपने दुकान के दूध से हलवाई से मिठाइयां बनाकर खुद चौराहे पर खड़े होकर मिठाई बांटते थे। ऐसा वे सालों से करते आ रहे थे। बच्चों के लिए तो इस आजाद दिन का मतलब ही पहलवान के यहां से मिठाई मिलना था। तो जितनी भीड़ परेड ग्राउंड पर रहती थी उससे कम क्या पहलवान के यहां रहती होगी? सभी मिठाई खाते और पहलवान की तारीफ करते थकते नहीं थे। एक बार म्युन्सिपालिटी में नए अधिकारी आए। नए अधिकारी अपना रंग जमाना चाहते थे। उन्होंने इसके लिए पहलवान को चुना। उन्होंने पहलवान की दुकान को गैरकानूनी बताया, कहा कि यह सरकारी जगह पर अतिक्रमण है और उसे वहां से हटाना होगा। पहलवान ने सुना तो वे सकते में आ गए। लोगों में भी चर्चा चल पड़ी कि पहलवान ऐसा काम कैसे कर सकते हैं? लोगों ने कहा कि अब तो पहलवान की दुकान गई काम से। लोगों में यह बात भी चल पड़ी कि अधिकारी पहलवान से पैसे ऐंठना चाहता है और अब तो पहलवान की दुकान गई काम से, क्योंकि पहलवान तो नियम से काम करेंगे। एक व्यक्ति का तो कहना था कि अपने देश में हर काम करवाने के पैसे लगते हैं। पहलवान अपनी तैयारी में लगे थे। उन्होंने अपने दादाजी के जमाने के कागज-पत्तर निकाले। बात पहलवान की इज्जत की थी। वे कोई भी काम नियम-कायदे तोड़कर नहीं करते हैं। अधिकारी ने कागज-पत्तर देखने से मना कर दिया और अड़ गया कि दुकान तो वहां नहीं रहेगी और पहलवान का कहना था कि दुकान यहीं रहेगी। दोनों के बीच खूब कहा-सुनी हुई। पहलवान अपनी बात पूरे समय समझाते रहे, पर अधिकारी मानने को तैयार ही न था। पहलवान चाहते तो अधिकारी को किसी और तरह से भी बात समझा सकते थे, पर नियम-कायदों में उनका पूरा भरोसा था। तो वे बड़े अफसर से मिलने जा पहुंचे। बड़े अफसर को पहलवान ने पूरी बात शांति के साथ बताई और कागज-पत्तर सामने रख दिए। अफसर ने पूरी बात सुनी और फिर उस अधिकारी को बुलाकर डांटा। पहलवान की दुकान पहले की तरह ही चालू रही। बच्चों को सबसे ज्यादा खुशी हुई कि अब उनके आजादी का दिन उन्हें मुंह फीका रखकर नहीं मनाना पड़ेगा। कुछ दिनों बाद म्युन्सिपालिटी के उस अधिकारी को भी अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने पहलवान से माफी मांगी। पहलवान ने उसे अपना दोस्त बना लिया। इसे कहते हैं सचाई की जीत।
(Source);(http://mirchifacts.com/romanchak-kahaniya/N%2087.html)
Source
Plagiarism is the copying & pasting of others work without giving credit to the original author or artist. Plagiarized posts are considered spam.
Spam is discouraged by the community, and may result in action from the cheetah bot.
More information and tips on sharing content.
If you believe this comment is in error, please contact us in #disputes on Discord
Upvoted.
Defended (16.67%)
Everything You Need To Know About Sneaky Ninja
woosh Summoned by @nisha2511 Sneaky Ninja supports @youarehope and @tarc with a percentage of all bids.