ग़ज़ल
ये ज़रूरी है रास्ते के लिए ।
साथ कोई हो हौसले के लिए ।
जल्दबाज़ी में लुट गए हम भी ,
काश रुक जाते काफ़िले के लिए ।
उड़ गए तोड़कर क़फ़स पंछी ,
वक़्त ही कब था सोचने के लिए ।
तर्क करना है तअल्लुक लेकिन ,
वक़्त लगता है फ़ैसले के लिए ।
बात से बात निकालो यारों ,
है ज़रूरी ये सिलसिले के लिए ।
ज़िन्दगी में बहुत ज़रूरी है ,
कोई अजदाद मशवरे के लिए ।
अब तो मंज़िल है सामने 'नादान'
सोचना क्या है आबले के लिए ।
राकेश 'नादान'
अजदाद -----बुज़ुर्ग